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जिस तरह मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी के चमचे की तरह काम कर रहे थे और सोनिया गांधी की कठपुतली की तरह काम कर रहे थे, क्या उसी तरह भगवंत सिंह मान पंजाब में केजरीवाल की कठपुतली मुख्यमंत्री के रूप में काम करेंगे?

 जिस तरह मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी के चमचे की तरह काम कर रहे थे और सोनिया गांधी की कठपुतली की तरह काम कर रहे थे, क्या उसी तरह भगवंत सिंह मान पंजाब में केजरीवाल की कठपुतली मुख्यमंत्री के रूप में काम करेंगे?



मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे और कोई भी प्रधानमंत्री अपने पार्टी अध्यक्ष के बातों पर और उनके विचारधारों पर चलती है क्योंकि उसे उसी पार्टी के अध्यक्ष ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है तो हम इसी तरह **नरेंद्र मोदी** सरकार को भी एक **बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और जो इसके पहले थे अमित शाह उनकी कठपुतली** कह सकते हैं क्योंकि **नरेंद्र मोदी** कुछ भी अलग नहीं कर सकते हैं उनके इजाजत के बगैर क्योंकि पार्टी को एक विचारधारा के हिसाब से चलना पड़ता है अगर यहां पर बीजेपी की विचारधारा एक हिंदुत्व की विचारधारा है अगर वो इस्लामिक विचारधारा पर काम करने लगेंगे तो उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर के प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाएग क्योंकि वह जिस पार्टी से आते हैं उसकी विचारधारा एक हिंदुत्व विचारधारा है तो वह उस पार्टी के **कठपुतली** है यानी कि **अमित शाह जेपी नड्डा की कठपुतली है नरेंद्र मोदी** ठीक उसी प्रकार यह कहा जा सकता है कि **भागवत मान **मुख्यमंत्री बनेंगे तो आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष के हिसाब से ही बनेंगे तो उनको आम आदमी पार्टी अध्यक्ष के बातों को ध्यान रखना पड़ेगा और उनकी विचारधारा के खिलाफ कोई भी काम नहीं करना पड़ेगा जैसे कि उनकी विचारधारा है दिल्ली मॉडल उसी के जैसा पंजाब मॉडल बनाएंगे तो इस परिपेक्ष में उनको आम **आदमी पार्टी का कठपुतली या अरविंद केजरीवाल के कठपुतली कहा जा सकता है** यहां पर एक बात ध्यान देने वाली है कि जितने भी बड़े नेता होते हैं वह एक **अपना अलग छवि बनाना चाहते हैं** कि वह किसी के दबाव में नहीं काम करते हैं वह बिल्कुल न्यूट्रल है लेकिन यह **सिर्फ दिखावा** होता है असल में कोई भी नेता अपने पार्टी के विचारधारा के खिलाफ काम नहीं करता है अगर वह ऐसा काम करता है तो उसे पार्टी से बर्खास्त कर दिया जाता है या उसे वह विचारधारा बदलना होगा या उसमें संशोधन करना पड़ेगा।

**यहा पर नरेंद्र मोदी की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की गई है।**

की वह बिल्कुल न्यूट्रल है उन पर किसी का दबाव नहीं है बिल्कुल आजाद है कोई भी फैसले लेने के लिए लेकिन यह सच नहीं है वह सिर्फ वही करते हैं जो उनकी पार्टी का आदेश होता है। यहां तक की को क्या बोलेंगे इस पर भी उनके पार्टी अध्यक्षों के मर्जी होती है आपने देखा होगा कोई भी बड़ा नेता है स्पीच देने से पहले एक स्पीच स्क्रिप्ट लिखा आता है वह सिर्फ वही बोलेंगे तो इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि आज कोई भी नेता न्यूट्रल नहीं होता है सब पर पार्टी अध्यक्ष का दबाव होता है और वह वही करते हैं जो उनकी पार्टी अध्यक्ष कहती है।


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