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दुःख

 ये बात है उन दिनों की जब मै नवजवान था। तब मुझे कोई काम मुस्कील नही लगता था और मैने हर काम में अपना ताकत दिखाया चाहे वो कोई भी काम हो और मेरे लिए कोई भी काम कठिन नहीं था तब मैं सोचता था की मैं बहुत बलवान हु बहुत शक्तिशाली हु। मुझे याद है मैने बहुत जोखिम भरे काम भी आसनी से कर लेता था चाहे वो खेती बारी हो चाहे वो तेज हवा के साथ बारिश में खेतो मे भीज के काम किया या करके की सर्दियों मे भी घर का कोई भी काम हो वो आराम से कर देता था ।


यही सारी आदतें जो मुझे अपने आप को बहुत मजबूत कहने पर आमादा करती थी।

लेकिन कुछ समय बाद जब मैं बीमार हुआ और मुझे बुखार सर दर्द, बदन दर्द हुआ पहले दिन कुछ खास नहीं हुआ लेकिन दुसरे और तीसरे दिन मुझे बहुत कमजोर और बदन दर्द से बहुत परेशान था मैं ठीक से एक मिनट भी एक जगह सो नही पा रहा था बदन दर्द की वजह से और मेरे घर वाले मेरी पुरी सेवा कर रहे थे तब भी मुझे एक पल भी आराम नही हुआ और मैं रोने लगा मुझे लग रहा था मैं अब हमेशा ऐसे ही रहूंगा या ऐसे ही मेरी मौत हो जायेगी मैं बहुत रोया और अपने रब से दुआ करता था की परवरदीगार अब ठीक करदे मुझे अब ये दुख सहा नहीं जाता। और ऐसे ही दीन कट जाता था दीन तो कट जाता था लेकिन रात बहुत मुश्किल से कटती थी रात को बार बार उठ कर बैठ कर रोता था।


फिर मुझे याद आया कि ऐसे दर्द होता होगा हर किसी को जब मेरे पिता जी का तबियत खराब होता था तो हम उनको कहते थे की पिता जी कुछ ज्यादा ही नाटक करते हैं बहुत कमजोर दिल के थोड़ा सा तबियत खराब होने पर परेशान हो जाते है।

लेकिन जब मैं बीमार हुआ तो जाना की बहुत तकलीफ होती है हर किसी को लेकीन हम किसी दुख को कैसे महसूस कर सकते है। तब मैं बहुत रोया और दुआ किया अपने रब से पिता जी के बारे में अब मुझे बहुत अपसोस होता है अपने समझ पर मैं बहुत नादान था मैं समझ ना सका।


कोई भी इंसान  समझता ही नहीं किसी दुसरे के दुख को तब तक जब तक उसे वो दुख न हो जाए।

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